Sunday, September 1, 2013

मेरे गुनाहगार तो स्वामी विवेकानंद हैं



मेरे गुनाहगार तो स्वामी विवेकानंद हैं

बचपन में ही “हार की जीत” कहानी पढ़ रखी है जिसमे महान कथाकार सुदर्शन ने बाबा भारती और डाकू खडग सिंह के जरिये मनुष्य के विश्वास की महत्ता का वर्णन किया है और यह बताया है कि किस प्रकार मनुष्य के विश्वास की हत्या से बड़ा कोई अपराध नहीं है. कुछ ऐसी प्रकृत्ति भी रही कि स्वयं भी मनुष्यता पर अक्षुण्ण विश्वास रहा. यह तो हुआ कि एक, दो या कुछ लोगों पर शंका रही, अविश्वास रहा पर अपनी सम्पूर्णता में मानवता के प्रति आतंरिक रूप से सदा अत्यधिक उदारता रही.

ऐसा नहीं है कि मैं हर समय उदारता की जीती-जागती प्रतिमूर्ति नज़र आऊं. यह भी सही है कि कई बार मैं स्वयं भी बहुत साधारण और कई बार अत्यंत स्वार्थी मनुज के रूप के ही सामने आता हूँ और उसी प्रकार से बर्ताव करता हूँ. अतः मैं हार की जीत कहानी के माध्यम से अपने आप को किसी भी प्रकार से महिमामंडित करने का प्रयास नहीं कर रहा, मात्र अपने वृहत्तर सोच की परिभाषा को प्रस्तुत कर रहा हूँ.

कुछ यही बात स्वामी विवेकानंद के एक वाक्य में भी पढ़ा था जहाँ उन्होंने कहा था कि यदि मैं एक हज़ार बार भी मनुष्यों द्वारा धोखा खाता हूँ तो भी मेरा मनुष्यता से विश्वास नहीं उठ सकता.
ये वाक्य मेरी बुनियादी सोच के आधार थे, हैं और हमेशा रहेंगे.

पर यह भी सही है कि मनुष्यता पर तो अनवरत विश्वास रहेगा लेकिन जो घटना मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ वैसी घटनाएँ ही निश्चित रूप से मनुष्यों के मन में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास पैदा करने के प्रमुख कारण होते हैं.

मैं वर्ष 2003-04 में पुलिस अधीक्षक, गोंडा के पद पर तैनात था. वहाँ अपने कार्य के दौरान कई लोगों में एक मनोज तिवारी से भी मेरा परिचय हुआ जो उस समय एक राजनैतिक पार्टी के सदस्य थे और गाहे-बगाहे लोगों की कोई समस्या ले कर आया करते थे.

वहाँ से स्थानांतरण के बाद भी मेरा इनसे मेल-मिलाप यदा-कदा हो जाया करता था क्योंकि ये कभी-कभार मेरे आवास पर सामान्य शिष्टाचार भेंट के नाम पर आया करते थे. वे मुझे बताते थे कि वे अब प्रायः लखनऊ में ही रहते हैं और शायद ठेकेदारी करते हैं. उनका एक मोबाइल नंबर भी मेरे पास था.

इसी रूप में उन्होंने मुझे दिनांक
04/06/2013 को प्रातः मुझे मेरे मोबाइल नंबर 094155-34526 पर एक नए मोबाइल नंबर से फोन किया और मुझसे कहा कि उनकी माँ की तबियत काफी खराब है और वे लोहिया अस्तपाल में भर्ती हैं जिनके लिए तत्काल पैसों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि वे बाकी पैसे का इंतज़ाम कर रहे हैं और यदि मैं उन्हें 6000 रुपये दे दूँ तो बड़ी कृपा होगी. उन्होंने मुझे कोई दिन भी बताया था जब तक वे मुझे पैसा वापस दे देंगे.

चूँकि मैं एक लंबे समय से उन्हें काम भर जान रहा था और उन्होंने अपनी माँ की बीमारी की ऐसी तात्कालिकता बतायी, अतः मुझे लगा कि उनकी मदद नहीं करना अन्यायपूर्ण और गलत होगा. यद्यपि मेरी पत्नी नूतन ने मुझे इसके लिए मना भी किया क्योंकि उन्हें शायद कुछ आशंका सी हुई, पर श्री तिवारी की माँ की कथित बीमारी की बात सुन कर मैंने अपनी पत्नी की बात दरकिनार कर दी जिस पर हममे हलकी तकरार भी हुई.

मनोज तिवारी कुछ देर बाद मेरे गोमतीनगर आवास स्थित निवास पर आये और मैंने स्वयं उन्हें
6000 रुपये दे दिये. यद्यपि साथ ही जिस नए मोबाइल नंबर से तिवारी ने फोन किया था, उसे मैंने सुरक्षित कर लिया. मैंने इसके कुछ दिन पहले ही हमारे घर में अखबार देने वाले को भी पांच हज़ार रुपये उधार उसकी बेटी की शादी के नाम पर दिये थे लिहाजा मैंने स्मरण के लिए इन दोनों पैसे का विवरण एक कॉपी में लिख लिया.

अखबार वाले का पैसा तो उसके बाद लगातार हर महीने कट जा रहा है पर तिवारी का पैसे लेने के बाद कभी दुबारा फोन नहीं आया. मैंने भी कई दिनों तक यह सोच कर फोन नहीं किया कि पता नहीं कोई होनी-अनहोनी हो गयी हो तो पैसे के लिए कहना अच्छा नहीं लगेगा.

बहुत दिनों बाद कल दिनांक
31/08/2013 को अचानक मुझे उनकी याद आई और मैंने उनके दो नंबरों  08858067067 तथा 07398983327 पर समय 19.09 के करीब फोन किया. इनमे से एक नंबर 07398983327 स्विच ऑफ मिला, जो इस समय भी स्विच ऑफ मिल रहा है जबकि दुसरे नंबर 08858067067 पर कोई अन्य व्यक्ति मिले जिन्होंने बताया कि वे इटवा से बोल रहे हैं. मेरे फोन पर वे स्वयं भी काफी परेशान थे क्योंकि जब से उन्हें यह नंबर मिला था तब से लगातार उनके पास श्री तिवारी को इसी प्रकार से पैसे के लिए खोजते हुए कई फोन आते रहते थे.

मैं समझ गया कि तिवारी ने इस प्रकार अपनी माँ की बात कह कर मुझसे पैसे ठगे हैं और शायद ऐसा उन्होंने कई अन्य लोगों के साथ भी किया है. फिर मैंने गोंडा में अपने एक निकट परिचित से जानकारी ली तो मालूम चला कि तिवारी के पिता का नाम मथुरा प्रसाद तिवारी है, वे कटरा बाज़ार थाने में किसी गाँव के रहने वाले हैं लेकिन उनके परिवार के कई लोग आज़ाद नगर कॉलोनी, निकट सीएमएस स्कूल, थाना कोतवाली नगर में रहते हैं. साथ ही यह भी ज्ञात हुआ कि तिवारी एक लंबे समय से लखनऊ में ही रहते हैं और उनके बारे में इस प्रकार से लोगों से अलग-अलग कारण बता कर पैसे ऐंठ लेने की आम शोहरत है जो लोगों को इसी प्रकार से कोई बहाना बना कर पैसे ले लेते हैं और फिर फोन नंबर बदल कर गायब हो जाते हैं.

इस प्रकार प्रथमद्रष्टया यह मामला ठगी का दिखता है जिनमे तिवारी मेरे और मेरे जैसे अन्य लोगों के परिचित बन कर उन्हें मानवीय आधार पर द्रवित कर उनके पैसे ठग रहे हैं और बाद में स्थान और फोन नंबर बदल कर ऐसे लोगों की पहुँच के बाहर हो जा रहे हैं.


मेरे लिए अपने छह हज़ार रुपये से अधिक अपने विश्वास का धोखा और माँ की बीमारी के नाम पर पैसा ठगने की बात ज्यादा महत्वपूर्ण है. अतः मैंने इस सम्बन्ध में थाना गोमतीनगर में एफआईआर दर्ज कराया है. मैं पुलिस सेवा में हूँ, सक्रीय भी रहता हूँ, अतः मेरा एफआईआर तुलनात्मक रूप से आसानी से दर्ज हो गया. आगे क्या औत कितनी कार्यवाही होगी, यह तो ईश्वर ही जानता है.

पर मैं इतना अवश्य जानता हूँ कि ऐसे मनोज तिवारी अपना जो करते हैं सो करते ही हैं, ये हज़ारों सीधे-सच्चे मनोज तिवारी का भी अहित करते हैं क्योंकि ये आस्था और विश्वास पर ठेस पहुंचाते हैं और समाज में परस्पर अविश्वास की भावना पैदा करते हैं. फिर अपनी माँ के नाम पर- मैं नहीं समझता इससे घृणित कोई और काम होगा कि आदमी सरे-आम अपनी माँ की रुग्णता का बहाना बनाए और दूसरों से पैसा ठगे. 

मैं तो इस घटना के बाद भी बाबा भारती और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से बंधा रहूँगा पर क्या यह अच्छा नहीं होता कि समाज में ऐसे खडग सिंह उर्फ मनोज तिवारी कम पैदा होते जो बिला-वजह मनुष्यता को दाँव पर लगाते रहते हैं. 



1 comment:

  1. Respected Mr. Thakur,
    Saw you in one news, googled and reached here...went through your various blogs. It made be elated and well as sorry. Why elated, an IPS officer is working for ordinary people in ordinary way and not trying to be Hero. Why sorry, such a great talent is being wasted in not so great things. I found you very lonely in your blog.
    Sir, I believe that the intensity and anger that is apparent in your blogs need to be redirected. It needs to be focused at bigger cause and needs to be less intense. (One can go Kejriwal's way but for that he initially needs Anna (To be intense, you need a liberal face)). This is required to avoid animosity. I am not asking you to be afraid of animosity, I am just saying that it drains a lot of your energy as well as makes your process slower. One must be stubborn to achieve his goal but he should be liberal in his approach.
    However, I must thank your parents who gave you this attitude and such great values.

    Thanks

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