Thursday, July 17, 2014

कांठ प्रकरण पर पीपल’स फोरम द्वारा मौके के अध्ययन



कांठ प्रकरण पर पीपल’स फोरम द्वारा मौके के अध्ययन


प्रस्तावना- पीपल’स फोरम लखनऊ स्थित एक सामाजिक संगठन है जो मूल रूप से लोकजीवन में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व तथा मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करता है. यह अध्ययन मेरे, सामाजिक कार्यकर्ता सलीम बेग, डॉ नूतन ठाकुर, दानिश खान, अभिषेक सिंह आदि द्वारा किया गया है. इसमें दोनों पक्ष के लोगों के अलावा राजनैतिक व्यक्तियों तथा प्रशासन के जिम्मेदार पदाधिकारियों एवं अन्य सजग बुद्धिजीवी संवर्गों से वार्ता तथा पूछताछ कर इस पूरे मामले की वस्तुस्थिति को अकादमिक ढंग से समझने का प्रयास किया गया है. साथ ही भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सभी सम्बंधित पक्षों के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं. इस अध्ययन की विस्तृत रिपोर्ट भारत सरकार तथा उत्तर प्रदेश सरकार को भी सौंपी जायेगी. 

मुख्य निष्कर्ष---

1.       सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि चाहे इसके ऐतिहासिक और सामाजिक कारण जो भी हों पर आज के दिन सच्चाई यही है कि इस पूरे इलाके के लोगों के बीच साम्प्रदायिक भावना और एक प्रकार की अंदरूनी दूरी निरंतर मौजूद रहती है जो मौका पाते ही सतह पर आ जाती है. यह बात इससे स्पष्ट हो जाती है कि एक ही तथ्य (मंदिर और उसके लाउडस्पीकर) के बारे में गांव के दोनों पक्षों ने बिलकुल अलग-अलग बात बतायी. जहां एक पक्ष ने यह कहा कि कई साल से लाउडस्पीकर बजता रहा है वहीँ दूसरे पक्ष ने यहाँ तक कह दिया कि अभी हाल तक मंदिर में बाउंड्री और गेट भी नहीं था और पहले लाउडस्पीकर केवल कुछ ख़ास अवसरों पर ही बजता था 
2.       अतः इन इलाकों में प्रशासन को यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि साम्प्रादायिक भावना की जड़ें काफी गहरी हो गयी हैं और उन्हें इसके सम्बन्ध में निरंतर अत्यंत सजग रहना चाहिए
3.       इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि इन तमाम इलाकों में साम्प्रदायिक भावनाएं दैनिक जीवन की अन्य तमाम बातों और संघर्षों से ज्यादा महत्व रखती हैं और लोग रोजी-रोटी की समस्याओं और दैनिक जीवन से जुडी अन्य तमाम गंभीर समस्याओं और घटनाओं की जगह सांप्रदायिक भावनाओं से कहीं अधिक तेजी से प्रभावित होते हैं.
4.       हमें ऐसी घटनाओं के लिए मात्र राजनैतिक दलों अथवा बाहरी लोगों को ही जिम्मेदार मानते रहने की सोच से निकलना होगा और यह स्वीकार करना होगा कि धार्मिक और साम्प्रदायिक भावनाओं की जड़ें काफी गहरी हैं और आम आदमी तक फैली हुई है
5.       राजनैतिक दल इस सच्चाई से अवगत होने के नाते हमेशा ऐसे अवसरों की तलाश में रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि गरीब, कम पढ़े-लिखे लोग तेजी से साम्प्रदायिक मुद्दों की तरफ प्रभावित हो जाते हैं जहां आसानी से उनसे जुड़ा जा सकता है जैसा कि कांठ की घटना में भी देखने को मिला. इस मामले को भी राजनैतिक पार्टियों ने अपने हितों के लिए काफी तूल दिया लेकिन उन्हें भी यह मौका तभी मिला जब स्थानीय लोगों ने उन्हें अवसर दिया.
6.       यह घटना एक बार पुनः यह स्पष्ट करती है कि चूँकि राजनैतिक दलों के लिए वोट सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है और वोट के लिए धार्मिक और साम्प्रदायिक भावनाएं सबसे आसान और प्रभावशाली होते हैं अतः वे स्वाभाविक रूप से ऐसे अवसरों की तलाश में निरंतर रहते हैं जिसमे कम मेहनत करके लोगों में अपनी पकड़ बनायी जा सकती है. इस मामले में भी ध्रुवीकरण करने के स्पष्ट प्रयास दिखे. अतः जो मामला आसानी से समाप्त हो सकता था वह राजनैतिक दलों की सहभागिता से अपने आप बड़ा हो गया और राजनैतिक दलों की भंगिमा यह बताती हैं कि मामला अभी थमता नहीं दिख रहा है
7.       चूँकि प्रशासन और राजनैतिक दलों के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं और जहां राजनीतक दलों के लिए वोट और लोगों का जुड़ाव महत्वपूर्ण है, वहीँ प्रशासन के लिए क़ानून व्यवस्था और विधि के राज्य की स्थापना, अतः प्रशासनिक अधिकारियों को यह तथ्य स्वीकार करते हुए अपने कार्यों को तदनुसार सम्पादित करना चाहिए और यदि कोई घटना हो जाए तो उसके लिए किसी एक अथवा अनेक राजनैतिक दलों को इंगित करने की जगह अपने कार्यों, योजना और अपनी रणनीति का विश्लेषण करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि बुनियादी रूप से ही प्रशासन और राजनैतिक दलों के कार्य और उद्देश्य में समानता नहीं होती
8.       इस प्रकरण में कई अवसरों पर कुछ प्रशासनिक अधिकारी इस बुनियादी सिद्धांत को भूल कर अपने कार्यों और रणनीति के विश्लेषण के स्थान पर राजनैतिक दलों की टीका-टिप्पणी करते पाए गए जिससे आसानी से बचा जा सकता था क्योंकि एक तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी, दूसरे इससे नीचे के प्रशासनिक अधिकारियों को भी अपनी कमियां और गलतियाँ छिपाने के बहाने मिल गए और तीसरे इसने मामले को बढाने में मदद की. अतः इस मामले में जाने-अनजाने कुछ प्रशासनिक अधिकारी अकारण पार्टी बन बैठे जिससे एक पक्ष द्वारा उनकी निष्पक्षता पर प्रश्न लगाए जाने लगे और उनके प्रशासनिक प्रभाव पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा
9.       भले ही लोगों में आतंरिक सांप्रदायिक भावनाएं थीं और राजनैतिक दल उन्हें बढाने की कोशिश में रहे पर जो भी स्थिति अनियंत्रित हुई, उसमे निश्चित रूप से प्रशासनिक जिम्मेदारी दिखी क्योंकि यह प्रकरण एक लम्बे समय तक चलता रहा था और ऐसे में कई ऐसी बातें थीं जिससे बचा जा सकता था. अतः यदि बेहतर सूझबूझ, अधिक जन संपर्क, स्थानीय लोगों से सीधे अधिक संवाद किया गया होता तो बेहतर परिणाम संभावित थे. जब लाउडस्पीकर लग गया था तो ख़ास कर इस संवेदनशील महीने में यह जानते हुए कि ऐसे मामले संवेदनशील होते हैं उसे तत्काल भारी पुलिस बल के साथ उतारने के कार्य से बचना शायद उचित होता
10.   लाउडस्पीकर उतारने वाले दिन जितना पुलिसबल मौके पर था उसमे यदि ग्रामीण विरोध भी कर रहे थे तो भी उन्हें गिरफ्तार करने का स्पष्ट औचित्य नहीं दिखता है क्योंकि भारी संख्या में पुलिसबल ले जा कर लाउडस्पीकर उतारने और उसके साथ ही महिलाओं सहित लोगों को गिरफ्तार करने से सम्बंधित पक्ष में गलत सन्देश गया और उन्हें ऐसा लगा कि प्रशासन एक पक्ष को संतुष्ट करने के लिए कार्य कर रहा है. इसके कारण एक बार यह जो धारणा बन गयी आगे भी अनेक कारणों से वह बरकरार रही और इसने भी प्रकरण को बढाने में काफी योगदान दिया
11.   जो ग्रामीण महिलाएं गिरफ्तार की गयी थीं उनमे तीन अधेढ़ उम्र की थीं और उन्होंने पुलिस के सामने और जेल में मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें कीं
12.   उपासना एक्सप्रेस और माल गाड़ी ट्रेन जिस समय कांठ में रोके गए उस समय उन्हें नहीं रोका जाना बेहतर होता क्योंकि उस समय काफी कम भीड़ थी और ये ट्रेन निकल जातीं तो मौके पर उतनी भीड़ नहीं जुटती और डीएम से सम्बंधित घटना और पथराव की घटना से बचा जा सकता था
13.   पुलिस और प्रशासन के कई अधिकारियों ने गोपनीयता की शर्त पर यह बात स्वीकार किया कि कई अवसरों पर कई अधिकारियों ने क़ानून व्यवस्था की नजाकत के अनुसार स्वयं को सुरक्षित करने के उपाय नहीं अपनाया जिसके कारण कई अधिकारी ऐसे घायल हुए जिससे वे आवश्यक सुरक्षा प्रबंध करने पर आसानी से बच सकते थे. यह तथ्य सामने आया कि कई अधिकारी हेलमेट और बॉडी प्रोटेक्टर पहनने में कोताही करते दिखे और बहुतायत में इन लोगों ने हाथ और पैर की सुरक्षा के लिए दिए गए प्रोटेक्टर नहीं पहना जिसके कारण कई सरकारी कर्मी घायल हुए.
14.   यदि इन सभी लोगों ने स्वयं की रक्षा के लिए समुचित सुरक्षा प्रबंध किया होता तो ये अधिक धैर्यपूर्वक मौके की स्थितियों का सामना कर पाते और जब कभी भी चोट लगने, पथराव होने के कारण जिस किसी भी स्तर पर अधीरता दिखाई गयी उससे बचा जा सकता था
                                                                                                                                                               
 17/07/2014                                                                                                                                                        

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