Monday, September 29, 2014

Northern Railway initiative against obscene toilet remarks



Northern Railway takes initiative against obscene remarks in coach toilets

 

Yesterday I got a letter which gave me utmost satisfaction to know that one of my small initiatives had been appreciated by the concerned Department and appropriate action taken in this regards.  I am talking of letter from Northern Railway which has taken an initiative to completely eradicate the menace of obscene words, vulgar graffiti etc in coach toilets.

Presenting photograph of an obscene writing during his journey in Delhi-Lucknow Rajdhani Express in July 2014, I had requested the Chairman of Railway Board to initiate action to curb such obscene remarks.

Now Barjesh Dharmani, Deputy Chief Commercial Manager, Northern Railway has intimated me that instructions have been given to all divisions to instruct all the coach attendants and ticket checking staff to have a watch on such miscreants to curb such activities. On board staff has been directed to take remedial action to obliterate such remarks found during duties.

Mechanical Department has also been asked to launch a drive to erase and scrub such dirty remarks in the coach toilets.

I thank Northern Railway officers from the core of my heart.


ट्रेन शौचालयों में अश्लीलता हटाने को उत्तरी रेलवे की पहल 

 

कल एक पत्र प्राप्त होने पर मन अत्यंत हर्षित हो गया कि चलो मेरे एक प्रयास को संबंधित विभाग ने सराहा और उस पर ठोस कार्यवाही भी शुरू की. बात कर रहा हूँ उत्तरी रेलवे द्वारा भेजे एक पत्र की जिसके अनुसार उसने अपने सभी ट्रेनों के डिब्बों के शौचालय आदि में लिखी तमाम अश्लील बातों, गंदे चित्रों आदि को रोकने की दिशा में पहल किया है.

मैंने जुलाई 2014 में अपनी दिल्ली-लखनऊ राजधानी एक्सप्रेस यात्रा में इस प्रकार के लिखे अश्लील शब्द की तास्वीर प्रस्तुत करते हुए अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड से इनके सम्बन्ध में कड़ी कार्यवाही का निवेदन किया था.

ब्रजेश धरमानी, उप मुख्य कमर्शियल मेनेजर, उत्तरी रेलवे ने मुझे पत्र भेज कर अवगत कराया है कि उत्तरी रेलवे के सभी डिवीज़न को आदेशित किया गया है कि वे सभी कोच अटेंडेंट तथा टिकेट निरीक्षण स्टाफ को इस प्रकार के कुत्सित हरकत करने वालों कर निगाह रखे. कोच स्टाफ को ऐसी अश्लील बातों को तत्काल हटाने के निर्देश दिए गए हैं.

साथ ही यांत्रिकी विभाग को एक अभियान चला कर सभी शौचालयों से ऐसी अश्लील बातों को हटाने के भी निर्देश जारी किये गए हैं.

उत्तर रेलवे के अधिकारियों को ह्रदय से आभार. 

 


सेवा में,
अध्यक्ष,
रेलवे बोर्ड,
भारत सरकार,
नयी दिल्ली
विषय- भारतीय रेल के विभिन्न ट्रेनों में अत्यंत अश्लील शब्दावली/ चित्र आदि के विषय में
महोदय,
      मैं अमिताभ ठाकुर पेशे से यूपी कैडर का एक आईपीएस अधिकारी हूँ और व्यक्तिगत स्तर पर विभिन्न सामाजिक कार्यों से भी जुड़ा रहता हूँ.

हाल में मैं लखनऊ से दिल्ली गया था और वहां से दिनांक 09/07/2014 को दिल्ली-लखनऊ राजधानी एक्सप्रेस (ट्रेन नंबर 12430), के थर्ड एसी के कोच न० बी9, जिसमे हमारा बर्थ नंबर 25 (पत्नी डॉ नूतन ठाकुर) तथा 28 (मेरा) था, से वापस लखनऊ लौट रहा था.
उस कोच के एक शौचालय में निम्न बात लिखी हुई थी -“लडकियां @@ के लिए हमसे बात करें. 81265-53157 पर, 81265-53157 काल मी. काल करें, B.T.K कर रहा हूँ. मेरी उम्र 22 वर्ष है. मेरा @@ 7 इंच लम्बा और मोटा है.” (@@ का प्रयोग दो अत्यंत अश्लील शब्दों के लिए किया गया है). ऐसा नहीं है कि मैंने इस तरह की लिखी बातें पहले भारतीय रेल में कभी नहीं देखी हो. मैं पूरे देश की बात नहीं जानता पर यूपी और बिहार, जहां मैंने अपने जिन्दगी का ज्यादातर हिस्सा बिताया है, में ट्रेनों के  शौचालयों में इस तरह की गन्दी बातें और तस्वीरें बहुत ज्यादा दिखती रही हैं, यद्यपि यह भी सही है कि ऐसी गन्दी तस्वीरें एसी कोच की तुलना में सेकंड क्लास में ज्यादा संख्या में दिख जाती हैं.
पूर्व में भी कई बार इस तरह की तस्वीर, शब्द आदि देख कर मुझे एक अजीब सी वितृष्णा और नाराजगी होती थी पर इस बार मैंने निश्चित किया कि मैं यह प्रकरण रेलवे के वरिष्ठतम अधिकारियों के संज्ञान में लाऊंगा और उनसे यह अनुरोध करूँगा कि वे इस प्रकार की गंदगी को रेलवे से दूर करने का पुख्ता इंतज़ाम करें. अतः मैंने इन शब्दों की फोटो खींची जिसे मैं इस पत्र के साथ सम्बद्ध कर रहा हूँ.
आप स्वयं सहमत होंगे कि सार्वजनिक स्थानों पर, रेलवे ट्रेन की कोचों में, इस तरह की घटिया, अश्लील और ओछी बातें किसी भी प्रकार से उचित नहीं हैं. ट्रेन में हर प्रकार के और हर उम्र के लोग आते-जाते हैं, महिलायें होती हैं, बच्चे-बच्चियां होते हैं. इसके अलावा कई बार देश-विदेश के लोग भी यात्रा करते हैं. जाहिर है कि जब वे ट्रेन के शौचालय में जाते हैं और वहां ऐसी भद्दी बातें और गन्दी तस्वीरें देखते हैं तो उन्हें किसी भी प्रकार से अच्छा नहीं लगता होगा. सार्वजनिक स्थान पर इस प्रकार की अश्लीलता अपने आप में अपराध और घृणित तो है ही, यह पूरे रेलवे प्रशासन के प्रति भी अनुचित सन्देश देता है.

चूँकि ये सारी ट्रेनें और उसके कोच रेलवे मंत्रालय के सम्पूर्ण नियंत्रण में है जहां रेलवे विभाग के हर प्रकार के स्टाफ काम करते हैं, अतः जब भी कोई व्यक्ति शौचालयों में इस प्रकार की अश्लील टिप्पणी आदि देखता है, चाहे अनचाहे वह सबसे पहले रेलवे विभाग को इसके लिए दोषी और उत्तरदायी समझता है. उसके मन में आता है कि रेलवे विभाग अपने पूर्ण नियंत्रण में रहने वाले इन स्थानों पर इस तरह की गन्दी हरकतों को क्यों नहीं रोकता? और यदि ऐसी हरकतें नहीं रुक पा रही हैं तो कम से कम यह जिम्मेदारी क्यों नहीं लेता कि जिन रेलवे अधिकारियों (कोच कंडक्टर, टीटीई, कोच सहायक आदि) के अधीन वे कोच हैं जिनमे इस तरह की बातें लिखी पायी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाए और उनका इस सम्बन्ध में उत्तरदायित्व नियत किया जाए? साथ ही यह प्रश्न भी प्रत्येक व्यक्ति के जेहन में आता है कि यदि किसी ने छुप-छुपा कर ऐसी गन्दी हरकत कर भी दी तो जब ट्रेन साफ़-सफाई आदि के लिए यार्ड में जाता है तो इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया जाता है और यदि ऐसी कोई अभद्र टिप्पणी, तस्वीरें आदि दिखती हैं तो उन्हें साफ़ करने की जगह उन्हें जस का तस क्यों छोड़ दिया जाता है ताकि आगे आने वाला हर आदमी उसे जाने-अनजाने पढ़ सके.
आप सहमत होंगे कि शौचालय में कौन क्या कर रहा है इस पर निगाह रखना आसान नहीं है पर आप इस बात से भी सहमत होंगे कि ऐसा करने वाले लोग बहुत अधिक संख्या में नहीं होते और यदि कोच के सम्बंधित स्टाफ को यह जानकारी हो कि इस तरह की बातों पर निगाह रखना भी उनकी जिम्मेदारी में आता है तो वे निश्चित रूप से सजग रहेंगे और इन घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की सम्भावना काफी कम हो सकती है. अभी ऐसा लगता है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ आदि रेलवे की प्राथमिकता में बिलकुल नहीं है, जिसके कारण ऐसा करने वालों के हौसले भी बढे रहते हैं और इस प्रकार की अभद्र टिप्पणियाँ/चित्र भारी संख्या में अंकित होते हैं जो सालों-साल यथावत बने रहते हैं, जबकि सार्वजनिक स्थान पर और राजकीय संपत्ति पर इस प्रकार की अश्लील बातें एक आपराधिक कृत्य भी हैं और भारी प्रशासनिक लापरवाही भी.
उपरोक्त तथ्यों के दृष्टिगत मैं आपसे निम्न निवेदन कर रहा हूँ-
1.       रेलवे ट्रेन के शौचालयों तथा अन्य स्थानों पर किसी प्रकार के अश्लील चित्रों/टिप्पणियों/शब्दों आदि की उपस्थिति को सभी स्तरों पर गंभीरता से लेने के कड़े निर्देश निर्गत करें
2.       ट्रेन के शौचालयों और अन्य स्थानों पर ऐसी अश्लील टिप्पणियों आदि की उपस्थिति के विषय में सम्बंधित कोच के स्टाफ की निश्चित जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व निर्धारित करने के सम्बन्ध में आवश्यक निर्देश निर्गत करने की कृपा करे
3.       ट्रेन के शौचालयों और अन्य स्थानों पर ऐसी अश्लील टिप्पणियों के अंकित होते ही यार्ड में अगली सफाई आदि होने के समय इन टिप्पणियों/चित्रों आदि को तत्काल हटाये जाने के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश निर्गत करने की कृपा करें
निवेदन करूँगा कि ये निर्देश महिलाओं, बच्चे-बच्चियों, संवेदनशील नागरिकों सहित समस्त लोगों के लिए सकूनदायक सिद्ध होंगे और वर्तमान में रेलवे द्वारा जिस प्रकार अनजाने में इन आपराधिक कृत्यों में सहभागी की भूमिका निभायी जा रही है, उसे समाप्त करते हुए आम लोगों की निगाहों में भी रेलवे की छवि को बेहतर बनाने में सहायक होंगे.
पत्र संख्या- AT/Rail/Graffiti                                      भवदीय,
दिनांक-11/07/2014
                                                              (अमिताभ ठाकुर )
                                                                  5/426, विराम खंड,
                                                            गोमती नगर, लखनऊ
                                                                                                                                                                 # 94155-34526
                                                                                                                                                amitabhthakurlko@gmail.com




 


Monday, September 22, 2014

Open Letter to Media persons from Dehradun



देहरादून के पत्रकार साथियों के नाम खुला पत्र 

पिछले सप्ताह उत्तराखंड के डीजीपी बी एस सिधू द्वारा ख़रीदे गए एक विवादित वन भूमि के मामले में इस प्रकरण को जानने-समझने और इस पर अपनी निजी हैसियत में अग्रिम कार्यवाही करने के लिए हम (मैं और पत्नी नूतन) देहरादून गये थे. 

मामले की कहानी लम्बी है और उसे मैं अलग से प्रस्तुत करूँगा. उस मामले में मेरे पास इतने दस्तावेज़ हैं जो मामले की सच्चाई को एकदम से साफ़ कह देते हैं. इन दस्तावेजों को देखते ही कोई भी समझ जाएगा कि यह “चोरी और सीनाजोरी” की एक अद्भुत दास्तान हैं जिसमे एक व्यक्ति ने अपने रसूख और ऊँचे पद का सीधा दुरुपयोग कर अपना व्यक्तिगत हित साधने और कर्तव्यशील लोगों को फंसाने और परेशान करने का कुकृत्य किया है.

यहाँ एक मरे हुए आदमी की जगह दूसरा आदमी खड़ा कर देने, 100 वर्ग फीट के गिरे हुए मकान को बैनामे में 1800 वर्ग फीट के पुराने बंगले के रूप में दर्शाने, 25-30 हज़ार प्रति वृक्ष कीमत के 250 साल के पेड़ों को उसी बैनामे में 1000 रुपये प्रति वृक्ष का दिखाये जाने, सरकारी कार्यवाही करने वाले जिम्मेदार अफसरों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज कराये जाने, उन मुकदमों में मनमाफिक कार्यवाही नहीं करने पर छोटे अफसर को प्रताड़ित किये जाने से ले कर बहुत कुछ इस कहानी में है जो अपने आप में अनूठी कथा है.

हमने देहरादून में मौके पर जा कर देखा और पाया कि कोई मंद बुद्धि व्यक्ति भी अगर सिर्फ एक बार ज़ा कर मौके को देखेगा तो समझ जाएगा कि जमीन वन विभाग की है पर फिर भी एक अत्यंत उच्चपदस्थ अधिकारी ने वह जमीन एक मरे हुए आदमी के नाम पर दुसरे नत्थूराम से खरीदी जिसपर स्वयं उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में हलफनामा दिया है कि प्रतिवादी संख्या चार (बी एस सिद्धू) द्वारा अपने पद का दुरुपयोग किया गया है.

मुझे यह मामला प्रताड़ित लोगों में से एक ने बताया. उन्हें कहीं से हमारे बारे में मालूम हुआ कि हम इस तरह के बेवकूफी भरे काम करते हैं और दूसरों के फटे में अपनी टांग घुसा कर आ बैल मुझे मार करने के आदती हैं. हमारी उस सज्जन से कई बार लम्बी बात हुई और उन्होंने हमें ईमेल पर तमाम दस्तावेज़ भेजे. वे अभिलेख इतने स्पष्ट थे कि कोई सामान्य बुद्धि का आदमी भी समझ सकता था कि इसमें सीधे-सीधे अपराध हुआ है, एक बड़े अफसर ने अपने पद और रसूख का बेजा फायदा उठाया है और वह अफसर अब अपनी ताकत का गलत प्रयोग कर लोगों को बुरी तरह परेशान कर रहा है.

हमारी मजबूरी यह है कि हम इस तरह के मामलों में घुसते रहते हैं. क्यों घुसते हैं? कारण कई हैं- एक तो खुलेआम इस तरह ताकत का दुरुपयोग देख कर मन परेशान हो जाता है, दूसरे कुछ अच्छा करने की आतंरिक इच्छा है, तीसरा खुला अत्याचार देख अपनी ताकत भर उसका प्रतिरोध करने की गन्दी आदत पड़ गयी है. बदले में किसी धन-दौलत, लाभ की इच्छा दूर-दूर तक नहीं है, हाँ एक इच्छा जरुर रहती है-सम्मान की, सराहना की. मैं मानता हूँ यह इच्छा भी नहीं रहनी चाहिए पर क्या करूँ अभी इससे मुक्त नहीं हो पा रहा हूँ. 

अतः जब इस प्रकरण की जानकारी मिली, इसका अध्ययन किया और यह समझ में बात आ गयी कि इस मामले में अत्याचार हुआ है तो हमने यह निर्णय किया कि मौका मिलते ही देहरादून जायेंगे, मौके पर बात समझेंगे और उसके बाद कार्यवाही करेंगे.

इसी सोच के साथ हमने देहरादून जा कर मौके पर जांच की जिससे हमारा मत और पुख्ता हो गया. अगले दिन हमने अपनी बात लोगों के सामने रखने के लिए प्रेस कांफ्रेंस रखा. इस कांफ्रेंस में मैं एक बार फिर समझा कि सच की लड़ाई में कितने तरह के जाने-अनजाने खतरे होते हैं.

हमने ग्यारह बजे प्रेस कांफ्रेंस का समय दिया था. जो पहले पत्रकार बंधू आये उन्हें देख कर आसानी से समझा जा सकता था कि वे हमसे नाराज़ हैं. तमतमाए चेहरे से उन्होंने मुझसे सवाल किया- “तो क्या आप उत्तराखंड की सारी जांच करेंगे? आप एडीजी श्रीवास्तव वाली जांच भी करेंगे?”

मैं समझ नहीं पाया ये एडीजी श्रीवास्तव कौन शख्स हैं और उनका क्या मामला है. मैंने कहा यदि मुझे जानकारी दी जाए तो मैं बिलकुल जांच करूँगा. वे सज्जन मेरे उत्तर से तनिक भी संतुष्ट नहीं दिखे. उन्होंने कहा-“आप श्रीवास्तव जी के मोबाइल फोन वाले मामले की भी जांच करेंगे?”

मैं हतप्रभ था कि इस वन विभाग वाले मामले में एडीजी श्रीवास्तव क्यों और कैसे आ गए हैं, ये एडीजी हैं कौन, इनका मामला क्या है, पर वे सज्जन लगातार इसी पर जमे हुए थे. मैंने कई बार कहा कि यदि मुझे बताया जाए तो मैं अपनी तरह से मामले की जांच करने की पूरी कोशिश करूँगा पर वे अंत तक संतुष्ट नहीं हुए. यही नहीं उन्होंने मुझे मेरी हैसियत से भी रूबरू कराया, कहा कि यदि आप इतने बड़े जांचकर्ता हैं तो बताये कि आप स्वयं सुपरसीड किये गए हैं, आप आईजी सिविल डिफेन्स क्यों हैं, किसी जिम्मेदार पद पर क्यों नहीं हैं?

इसके बाद एक दूसरे सज्जन आये. वे एक बड़े इलेक्ट्रॉनिक चैनल से थे. उन्होंने मामले पर पूछने की जगह मुझसे पूछा कि मैं लखनऊ से देहरादून क्यों चला आया. फिर उन्होंने कहा कि आखिर मुझसे इस मामले का क्या मतलब. उन्होंने मुझसे मेरी सेवा शर्तों, सेवा नियमावली, आचरण नियमावली आदि पर कई सवाल किये. उनकी भाव-भंगिमा से साफ़ दिख रहा था कि वे मुझे यह बताना चाह रहे थे कि मेरा आईपीएस अफसर हो कर लखनऊ से देहरादून आ कर इस तरह की जांच करना यदि एक आपराधिक कृत्य नहीं है तो कम से कम दुराचरण तो है ही जिसके लिए मुझे शर्मिंदा होना चाहिए.

एक तीसरे सज्जन आये. उन्होंने भी मुझसे एडीजी श्रीवास्तव और उनके मोबाइल की बात पूछी और यह कहा कि यदि आपको जांच का इतना शौक है तो आप एडीजी के मोबाइल मामले की जांच क्यों नहीं करते.

एक बड़े हिंदी अख़बार के साहब आये, उन्होंने भी मेरे लखनऊ से देहरादून आने पर अपनी स्पष्ट आपत्ति जताई, फिर मेरी सेवा नियमावली और इस जांच की वैधानिकता और औचित्य पर चर्चा की. यह अलग बात है कि अगले दिन उन्होंने इस प्रकरण को अपने समाचारपत्र में कोई स्थान ही नहीं दिया.

पांचवे सज्जन ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब घटना इतनी पुरानी है तो मैं अब क्यों आ रहा हूँ, आखिर इस प्रकार अचानक मेरे अवरित होने का कारण और निहितार्थ क्या है?

इस प्रकार एक अच्छी संख्या में सम्मानित पत्रकार साथियों ने मूल मुद्दे की जगह एडीजी श्रीवास्तव के मोबाइल प्रकरण, लखनऊ से देहरादून आ कर जांच करने, आईपीएस अफसर होने के बावजूद जांच करने, मेरी सेवा शर्तों, ऐसी जांच की आधिकारिकता पर अपना ध्यान केन्द्रित रखा और इनमे से कईओं के स्वर से नाराजगी स्पष्ट झलक रही थी.

बाद में मुझे दो-तीन पत्रकार साथियों ने कहा कि दरअसल एक अफवाह चारों ओर उड़ाई गयी है कि हम यूपी के किसी रिटायर्ड एडीजी श्रीवास्तव के कहने पर देहरादून आये हैं जिनके खिलाफ स्वयं किसी मोबाइल चोरी के मामले में कोई गंभीर जांच चल रही अर्थात हम कोई बयाना या सुपारी ले कर आये हैं. मतलब यह कि हमारे आने का उद्देश्य ही अपवित्र और स्वार्थ-प्रेरित है. मेरे लखनऊ आने के बाद मेरे एक पुराने सुहृद ने मुझे बताया कि कई लोगों को यह बात कही गयी थी कि हमारे इस पूरे अभियान में ही खोट और छलावा है और इस कारण कई लोगों ने हमारी बातों को उसी चश्मे से देखा और उन्हें स्वाभाविक रूप से नज़रंदाज़ किया.

मैं सभी सम्मानित पत्रकार साथियों से कहना चाहूँगा कि मुझे आदतन ज्यादा झूठ बोलने की आदत नहीं है. यदि ऐसे किसी भले आदमी (श्रीवास्तव जी) ने हमें भेजा होता तो मुझे उनका नाम लेने में बहुत देर नहीं लगता. यह तो है कि हमें यह मामला इस प्रकरण से जुड़े किसी व्यक्ति ने ही बताया था और उसके द्वारा भेजे दस्तावेजों के आधार पर ही  हम देहरादून गए थे. मैं उस भले आदमी का नाम सार्वजनिक नहीं कर रहा यद्यपि उसे समझना उतना मुश्किल भी नहीं है. पर इतना है कि हम किसी श्रीवास्तव जी नाम के एडीजी के कहने पर देहरादून नहीं गए थे और मैं यह बात लिखते समय तक नहीं जानता कि इस श्रीवास्तव एडीजी के मोबाइल फ़ोन चोरी का क्या मामला है. यह अलग बात है कि अब मैं यह मामला जानना चाहता हूँ और प्रयत्न कर जल्दी जान भी लूँगा.

मैं पुनः देहरादून के सम्मानित पत्रकार साथियों से कहना चाहूँगा कि मैं और मेरी पत्नी डॉ नूतन ठाकुर सिवाय एक ताकतवर आदमी के गलत कार्यों का विरोध करने, कुछ प्रताड़ित लोगों की मदद करने और अपनी समझ से न्याय की एक लड़ाई लड़ने के सिवाय किसी भी अन्य मोटिव या उद्देश्य से देहरादून नहीं गए थे. हाँ, जैसा मैंने ऊपर कहा मेरा यदि कोई फायदा और लालच था तो वह था सम्मान, कृतज्ञता और सराहना की इच्छा. लेकिन इस सम्मान, कृतज्ञता और सराहना के लिए हमने अच्छी कीमत भी चुकाई थी- पूरे मामले को गहराई में समझना, सहारनपुर से अपनी गाडी से अपने पेट्रोल के खर्चे पर चल कर आना, अपने पैसे से गेस्ट हाउस में रुकना, एक दिन की छुट्टी लेना, दिन भर मेहनत कर मौके पर जाना और पूछताछ करना आदि. हाँ, यह सही है कि इस नेक काम में कई अच्छे लोगों ने हमारी मदद भी की जिनमे आपकी तरह के पत्रकार बंधू शामिल थे जो हमसे परिचित थे और जिन्हें प्रतिपक्षी द्वारा उड़ाई अफवाह की जगह हमारी नेकनीयत पर अधिक आस्था थी. उन कृपालु सज्जनों के कारण हमें प्रेस कांफ्रेंस का स्थान निशुल्क मिल गया जिससे बड़ी राहत रही.

यद्यपि इन बातों का कोई बहुत मतलब नहीं है फिर भी मैंने इन्हें अपनी तसल्ली के लिए लिखा है ताकि मुझे यह ना लगे कि मैंने अपनी बात कहने की कोशिश तक नहीं की. मैं आसानी से समझ सकता हूँ कि यदि किसी भी व्यक्ति को एक स्थानीय उच्च-पदस्थ व्यक्ति द्वारा एक नवागंतुक अपरिचित के विषय में ऐसी नकारात्मक बातें कही जायेगी तो उसका उस नवागंतुक को गहरे शक की निगाहों से देखना और उसके सभी कार्यों में घिनौना निहितार्थ खोजना बहुत स्वाभाविक होगा. 

अतः मेरे पत्रकार साथियों ने जो किया वह वाजिब था. बस इतना निवेदन अवश्य है कि यदि खुले दिलो-दिमाग से वार्ता हुई होती तो निश्चित रूप से परिणाम दूसरे होते. इसके अतिरिक्त यह भी निवेदन है कि चूँकि हम अच्छी तरह समझ चुके हैं कि यह एक बहुत गंभीर मामला है, अतः हम बिना लाभ-हानि और व्यक्तिगत हित-अहित सोचे अपनी औकात भर इस पर आगे भी प्रयास करेंगे.

अंतिम बात मैं यह कहना चाहूँगा कि यदि मेरी बातों में थोड़ी सी भी सच्चाई का अंश दिखे तो हमारे इस अभियान को अपना अभियान समझ कर उसमे अपना सहयोग प्रदान करने की कृपा करें क्योंकि प्रकरण काफी गंभीर है और सीधे-सीधे अधिकारों के व्यापक दुरुपयोग से जुड़ा हुआ है जिस पर आपके विशेष सहयोग की महती आवश्यकता है.

अमिताभ ठाकुर